New Delhi : Supreme Court ने असम सरकार की ‘पुश बैक’ नीति के तहत बिना उचित प्रक्रिया के लोगों को बांग्लादेश निर्वासित करने के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया है। कोर्ट ने याचिकाकर्ता ऑल बीटीसी माइनॉरिटी स्टूडेंट्स यूनियन (ABMSU) को गुवाहाटी हाईकोर्ट में जाने का निर्देश दिया। हालांकि, एक अन्य याचिकाकर्ता यूनुस अली की व्यक्तिगत याचिका, जिसमें उनकी मां मोनोवारा बेगम की अवैध हिरासत और संभावित निर्वासन का मुद्दा उठाया गया, पर सुप्रीम कोर्ट ने अगले सप्ताह सुनवाई करने का फैसला किया है।
मामले का विवरण
30 मई 2025 को यूनुस अली ने मुख्य न्यायाधीश भूषण रामाकृष्ण गवई, जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह, और जस्टिस ए.एस. चंदुरकर की पीठ के समक्ष याचिका दायर की थी। यूनुस ने आरोप लगाया कि उनकी मां मोनोवारा बेगम को 24 मई 2025 को धुबरी पुलिस थाने में बयान दर्ज करने के बहाने बुलाया गया और फिर अवैध रूप से हिरासत में ले लिया गया। उनकी मां की अंतिम जानकारी 24 मई को मिली थी और उन्हें डर है कि बिना कानूनी प्रक्रिया के उनकी मां को बांग्लादेश निर्वासित कर दिया गया है।
यूनुस के वकील शोएब आलम ने कोर्ट में दलील दी कि मोनोवारा की ओर से 2017 में सुप्रीम कोर्ट में एक विशेष अनुमति याचिका (SLP) दायर की गई थी, जो अभी लंबित है। यह याचिका गुवाहाटी हाईकोर्ट के उस फैसले को चुनौती देती है, जिसमें विदेशी न्यायाधिकरण (फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल) के मोनोवारा को विदेशी घोषित करने के आदेश को बरकरार रखा गया था। आलम ने कहा कि मोनोवारा 12 दिसंबर 2019 से सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत जमानत पर थीं, जिसमें तीन साल से अधिक समय तक असम के विदेशी हिरासत शिविरों में रहने वाले बंदियों को सशर्त रिहाई दी गई थी।

याचिकाकर्ता की शिकायत
यूनुस ने बताया कि जब वे अगले दिन पुलिस थाने गए और अधिकारियों को सूचित किया कि उनकी मां का मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है, तो उन्हें मोनोवारा से मिलने या उनकी रिहाई की जानकारी नहीं दी गई। वकील शोएब आलम ने कोर्ट में चिंता जताई कि असम में कई लोगों को रातों-रात हिरासत में लेकर बांग्लादेश सीमा पर भेज दिया जा रहा है, जबकि उनके कानूनी मामले लंबित हैं। उन्होंने वीडियो साक्ष्यों का हवाला दिया, जो कथित तौर पर ऐसी घटनाओं को दर्शाते हैं। याचिका में मांग की गई कि मोनोवारा को तत्काल रिहा किया जाए और असम सरकार की ‘पुश बैक’ नीति की जांच हो।

सुप्रीम कोर्ट का रुख
2 जून 2025 को जस्टिस संजय करोल और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने ABMSU की याचिका पर सुनवाई से इनकार करते हुए कहा कि आप गुवाहाटी हाईकोर्ट क्यों नहीं गए?” कोर्ट ने याचिकाकर्ता के वकील संजय हेगड़े से कहा कि वे हाईकोर्ट में उचित कानूनी उपाय करें।
याचिका में दावा किया गया था कि 4 फरवरी 2025 के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद, जिसमें 63 घोषित विदेशी नागरिकों को निर्वासित करने का निर्देश दिया गया था, असम सरकार ने बिना विदेशी न्यायाधिकरण के आदेश, राष्ट्रीयता सत्यापन या कानूनी उपायों की समाप्ति के लोगों को निर्वासित करने की व्यापक कार्रवाई शुरू की। यह नीति संविधान के अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता) और 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) का उल्लंघन करती है।

ABMSU की याचिका में कहा गया कि यह नीति संविधान के अनुच्छेद 14, 21 और 22 का उल्लंघन करती है और सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले के खिलाफ है, जिसमें नागरिकता अधिनियम 1955 की धारा 6A की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा गया। कोर्ट ने कहा था कि किसी व्यक्ति को तब तक निर्वासित नहीं किया जा सकता, जब तक कि उनके पास कानूनी उपायों का अवसर न हो।