नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट(Supreme Court) ने प्रयागराज में बिना उचित कानूनी प्रक्रिया अपनाए मकानों को ध्वस्त करने पर उत्तर प्रदेश सरकार को कड़ी फटकार लगाई है। अदालत ने इस कार्रवाई को “चौंकाने वाला और गलत संदेश देने वाला” बताते हुए कहा कि जिन मकानों को गिराया गया है, उनका पुनर्निर्माण किया जाना चाहिए।

सरकार की मनमानी पर सुप्रीम कोर्ट की नाराजगी
जस्टिस अभय ओका और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की बेंच ने बिना वैधानिक प्रक्रिया के मकानों के विध्वंस को अनुचित करार दिया। कोर्ट ने कहा कि सरकार को इस तरह की कठोर कार्रवाई में सुधार करने की आवश्यकता है।
अनुच्छेद 21 और नागरिकों के आश्रय अधिकार की याद दिलाई
अदालत ने इस मामले पर टिप्पणी करते हुए कहा,”ऐसी कार्रवाइयां न केवल चौंकाने वाली हैं, बल्कि इससे गलत संदेश भी जाता है। संविधान में अनुच्छेद 21 के तहत हर नागरिक को जीने और आश्रय का अधिकार प्राप्त है, जिसे किसी भी परिस्थिति में नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।”
सरकार की दलील और याचिकाकर्ताओं का पक्ष
उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश हुए अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणि ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ताओं को विध्वंस से पहले नोटिस दिया गया था और उन्हें जवाब देने का पर्याप्त समय मिला था।
वहीं, याचिकाकर्ताओं के वकील ने सरकार की कार्रवाई पर सवाल उठाते हुए कहा कि प्रशासन ने यह मानकर मकानों को ध्वस्त कर दिया कि वे गैंगस्टर अतीक अहमद की संपत्ति से संबंधित थे। जबकि अतीक अहमद की 2023 में हत्या हो चुकी है, ऐसे में संपत्ति को बिना उचित प्रक्रिया के गिराया जाना न्यायसंगत नहीं है।
प्रभावित लोगों की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई
इस मामले में एडवोकेट जुल्फिकार हैदर, प्रोफेसर अली अहमद और अन्य प्रभावित नागरिकों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है, जिनके मकानों को प्रशासन ने ढहा दिया था।
कोर्ट की फटकार के बावजूद जारी है कार्रवाई
सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी के बावजूद प्रयागराज विकास प्राधिकरण (PDA) ने अतीक अहमद से जुड़े बिल्डर्स और प्लॉटर्स के खिलाफ बड़ी कार्रवाई की। PDA की टीम ने बुलडोजर चलाकर 18 बीघा से अधिक जमीन को खाली कराया।
सूत्रों के मुताबिक,जिन बिल्डर्स के खिलाफ कार्रवाई की गई, वे अतीक अहमद के करीबी माने जाते हैं। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि बिना कानूनी प्रक्रिया के इस तरह की कार्रवाई को रोका जाए।