Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए स्पष्ट किया है कि यदि कोई महिला शादी के वादे पर अपनी सहमति से शारीरिक संबंध बनाती है, तो इसे बलात्कार की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता। Supreme Court ने कहा कि यदि सहमति स्वेच्छा से और बिना किसी दबाव के दी गई हो, तो ऐसे संबंधों को अपराध नहीं कहा जा सकता।
यह मामला POCSO अधिनियम (Protection of Children from Sexual Offences Act) से जुड़ा हुआ था, जिसमें एक युवक पर आरोप लगाया गया था कि उसने शादी का झांसा देकर एक युवती से संबंध बनाए। निचली अदालत ने युवक के खिलाफ बलात्कार का मामला कायम रखा था, लेकिन Supreme Court ने इसे खारिज कर दिया।
Supreme Court ने कहा कि हर मामले में सहमति की प्रकृति और परिस्थिति की जांच जरूरी है। अगर महिला बालिग है और उसने अपनी मर्जी से संबंध बनाए हैं, तो इसे धोखा या अपराध नहीं माना जा सकता, भले ही बाद में शादी न हो सके।
इसके साथ ही Supreme Court ने यह भी कहा कि POCSO जैसे कानूनों का दुरुपयोग नहीं किया जाना चाहिए। इन कानूनों का उद्देश्य बच्चों और वास्तविक पीड़ितों को सुरक्षा देना है, न कि सहमति से बने संबंधों को अपराध की श्रेणी में लाना।
Supreme Court के इस फैसले के साथ ही आरोपी युवक के खिलाफ चल रही कार्यवाही समाप्त कर दी गई है। अदालत ने दोहराया कि न्यायिक प्रक्रिया में निष्पक्षता और प्रत्येक मामले की विशेष परिस्थितियों को ध्यान में रखना अत्यंत आवश्यक है।
