Dev Deepawali 2024 : कार्तिक पूर्णिमा के पावन अवसर पर महादेव की नगरी काशी में आज देव दीपावली का भव्य आयोजन किया जा रहा है। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन सभी देवी-देवता पृथ्वी पर आते हैं, गंगा स्नान करते हैं और दीपदान करते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि देव दीपावली (Dev Deepawali 2024) का संबंध भगवान शिव से से जुड़ा हुआ है? आइए जानते हैं इससे संबंधित एक पौराणिक कथा।
Dev Deepawali 2024 : भगवान शिव को समर्पित है देव दीपावली का पर्व
देव दीपावली को कार्तिक पूर्णिमा या त्रिपुरारी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन काशी के 84 गंगा घाट, गलियां, और शहर के कोने-कोने में दीपों की जगमगाहट होती है। यह पर्व मुख्य रूप से भगवान शिव को समर्पित है। शाम को परंपरागत गंगा आरती होती है और घाटों पर दीपों की कतारें सजाई जाती हैं। साथ ही लोग अपने घरों को भी दीपों और रंगोली से सुसज्जित करते हैं।
पौराणिक कथा
पौराणिक मान्यता के अनुसार, शिव के पुत्र कार्तिकेय ने अपने पिता की सहायता से तीनों लोकों में उत्पात मचाने वाले असुर तारकासुर का अंत किया था। तारकासुर के तीन पुत्रों ने इसके प्रतिशोध में घोर तपस्या की और ब्रह्मा जी को प्रसन्न कर अमर होने का वरदान मांगा। ब्रह्मा जी ने अमरता का वरदान तो नहीं दिया, पर एक जटिल शर्त दी कि उनकी मृत्यु तभी संभव होगी जब अभिजीत नक्षत्र में तीनों के महल एक स्थान पर आ जाएं, और कोई शांत पुरुष एक अद्वितीय रथ और असंभव अस्त्र से उन पर वार करे।
कैसे हुई काशी में देव दीपावली की शुरुआत
ब्रह्मा जी के वरदान के कारण त्रिपुरासुर अजेय बन गए और उन्होंने देवताओं को स्वर्ग से खदेड़ दिया। पृथ्वी पर त्रिपुरासुर के अत्याचार से सभी जीव भयभीत हो उठे। तब देवताओं ने महादेव से त्रिपुरासुर का वध करने का आग्रह किया। महादेव ने एक विशेष रथ की सवारी की, जिसमें सूर्य और चंद्रमा पहिये के रूप में थे, और अभिजीत नक्षत्र में कार्तिक पूर्णिमा के दिन त्रिपुरासुर का वध कर दिया। देवताओं ने इस विजय पर महादेव को ‘त्रिपुरारी’ और ‘त्रिपुरांतक’ नाम दिया। इसके उपलक्ष्य में देवताओं ने काशी में दीप प्रज्वलित कर अपनी खुशी व्यक्त की। इस तरह काशी में देव दीपावली (Dev Deepawali 2024) का पर्व मनाने की परंपरा का आरंभ हुआ।