लखनऊ। उत्तर प्रदेश की राजनीति में कभी अहम भूमिका निभाने वाली बहुजन समाज पार्टी (बसपा) का जनाधार लगातार गिरावट की ओर है। हाल के चुनावी नतीजों और वोट शेयर में आई कमी ने पार्टी के अस्तित्व पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
2019 से 2024: गिरते आंकड़े
2019 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन कर बसपा ने 10 सीटों पर जीत दर्ज की थी। इसके बाद, 2022 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने अकेले चुनाव लड़ते हुए महज 12.83% वोट शेयर हासिल किया। हाल ही में हुए यूपी के उपचुनावों में यह आंकड़ा और गिरकर केवल 7% रह गया।
दलित वोट बैंक में सेंध
पार्टी के कोर दलित वोट बैंक में बड़ी सेंधमारी होती दिख रही है। पश्चिमी यूपी में बसपा का बड़ा हिस्सा अब चंद्रशेखर आज़ाद रावण की ओर झुकता नजर आ रहा है। वहीं, भाजपा ने भी अपने दलित वोट बैंक को दोबारा हासिल करने में सफलता पाई है।

मायावती का फैसला: नहीं लड़ेगी उपचुनाव
उपचुनावों में लगातार खराब प्रदर्शन और चुनावी धांधली के आरोप लगाते हुए बसपा सुप्रीमो मायावती ने ऐलान किया है कि उनकी पार्टी अब उपचुनाव में हिस्सा नहीं लेगी। हाल ही में यूपी में 9 सीटों पर हुए उपचुनाव में भाजपा ने 7 सीटें जीतीं, जबकि 2 सीटों पर सपा का कब्जा रहा। बसपा एक भी सीट नहीं जीत सकी।
गिरावट के संकेत
- 2012 विधानसभा चुनाव : 25.91% वोट शेयर, 80 सीटें
- 2017 विधानसभा चुनाव : 22.23% वोट शेयर
- 2022 विधानसभा चुनाव : 12.83% वोट शेयर
- 2024 उपचुनाव : 7% वोट शेयर
क्या बसपा का भविष्य खतरे में है ?
बसपा के लगातार गिरते प्रदर्शन से यह स्पष्ट है कि पार्टी का जनाधार तेजी से सिमट रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर पार्टी ने अपनी रणनीति में बदलाव नहीं किया, तो यूपी की राजनीति में इसका प्रभाव धीरे-धीरे खत्म हो सकता है।
