Varanasi : 84 घाटों के गंगा जल से प्रभु जगन्नाथ का हुआ जलाभिषेक, भक्तों के प्रेम में भीगकर भगवान होंगे बीमार, अब 15 दिन करेंगे विश्राम

Varanasi : वाराणसी, धर्म और परंपराओं की नगरी, जहां ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा पर भगवान जगन्नाथ के जलाभिषेक की विशेष परंपरा निभाई जाती है। इस विशेष दिन पर श्रद्धालु गंगा जल से भगवान का स्नान कराते हैं। मान्यता है कि इस अभिषेक के बाद भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा बीमार पड़ जाते हैं और 15 दिन तक एकांत में विश्राम करते हैं। इस दौरान वे किसी को दर्शन नहीं देते।

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सुबह से शुरू हुआ जल चढ़ाने का सिलसिला

बुधवार की सुबह 5 बजे मंगला आरती के साथ भगवान जगन्नाथ के मंदिर में उत्सव की शुरुआत हुई। उसके बाद पंचमेवा का भोग अर्पित किया गया और फिर श्रद्धालुओं द्वारा जल चढ़ाने की प्रक्रिया शुरू हुई, जो देर शाम तक चलती रही। भक्त तुलसी की माला, फल और 84 घाटों से एकत्रित गंगा जल लेकर मंदिर पहुंचे।

Varanasi : 84 घाटों के गंगा जल से प्रभु जगन्नाथ का हुआ जलाभिषेक, भक्तों के प्रेम में भीगकर भगवान होंगे बीमार, अब 15 दिन करेंगे विश्राम Varanasi : 84 घाटों के गंगा जल से प्रभु जगन्नाथ का हुआ जलाभिषेक, भक्तों के प्रेम में भीगकर भगवान होंगे बीमार, अब 15 दिन करेंगे विश्राम

भगवान को इस मौके पर गुलाबी वस्त्र पहनाए गए और उन्हें गर्भगृह की छत पर सिंहासन पर विराजमान किया गया, जहां से वे भक्तों को दर्शन दे रहे हैं। इस अवसर पर काशीवासियों के साथ-साथ देशभर के श्रद्धालु भी भगवान जगन्नाथ के दर्शन के लिए मंदिर में उमड़ पड़े।

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परंपरा का गूढ़ भाव: जल से स्नान और फिर एकांतवास

भगवान जगन्नाथ मंदिर के प्रधान पुजारी पंडित राधेश्याम पांडेय ने बताया कि ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन जब तापमान अधिक होता है, तब भगवान को ठंडक देने के लिए जलाभिषेक किया जाता है। लेकिन अत्यधिक जल स्नान के कारण भगवान बीमार पड़ जाते हैं और 15 दिनों तक एकांतवास (पुरी परंपरा में इसे ‘अनासरा’ कहा जाता है) में चले जाते हैं। इन दिनों में मंदिर के पट बंद रहते हैं और भगवान को परवल के काढ़े का भोग अर्पित किया जाता है।

पुरातन मंदिर और अद्भुत मान्यता

वाराणसी के अस्सी क्षेत्र में स्थित यह मंदिर भारतीय पुरातत्व विभाग के अनुसार वर्ष 1711 में निर्मित हुआ था। मान्यता है कि जो श्रद्धालु पुरी नहीं जा पाते, उन्हें काशी के इस मंदिर में भगवान जगन्नाथ के दर्शन करने से वही पुण्यफल प्राप्त होता है।

अनीता, एक श्रद्धालु ने बताया, “हम हर साल जल चढ़ाने आते हैं। आज भगवान को इतना जल अर्पित होता है कि वह बीमार हो जाते हैं, फिर उन्हें काढ़ा पिलाया जाता है। पिछले 25 वर्षों से यह परंपरा निभा रही हूं।”

पंडित वेंकट रमण घनपाठी ने कहा, “आज भगवान को जल से स्नान कराया जा रहा है, और यही परंपरा उन्हें अगले 15 दिन एकांत में ले जाती है। इस मंदिर की मान्यता इतनी गहरी है कि हर साल देशभर से श्रद्धालु यहां दर्शन करने आते हैं।”

अब अगली भव्य परंपरा: रथयात्रा

भगवान जगन्नाथ का अगला सार्वजनिक दर्शन 27 जून को रथयात्रा के दिन होगा, जब वह एक बार फिर भक्तों के बीच आएंगे और तीन दिन तक भ्रमण करते हुए दर्शन देंगे।

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