कार्तिक मास की अमावस्या को भारत में दीवाली का पर्व मनाया जाता है। इस वर्ष, दीवाली का त्योहार 30 अक्टूबर 2024 को मनाया जा रहा है। इस दिन मां लक्ष्मी और भगवान गणेश की विशेष पूजा-अर्चना की जाएगी। आपने देखा होगा कि दीवाली की पूजा में खील और बताशे का प्रसाद अनिवार्य रूप से चढ़ाया जाता है; इसके बिना मां लक्ष्मी की पूजा अधूरी मानी जाती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि दीवाली की पूजा में खील-बताशे क्यों चढ़ाए जाते हैं और इसका क्या महत्व है? आइए इसके पीछे छिपे कारणों को समझते हैं।
दीवाली का महत्व
दीवाली को सुख-समृद्धि का प्रतीक माना गया है। इस दिन मां लक्ष्मी की पूजा करने से वे सुख-समृद्धि, धन-दौलत, और ऐश्वर्य का आशीर्वाद देती हैं। दीवाली का त्योहार मेलजोल का भी प्रतीक है, जब लोग अपने घरों में एक-दूसरे से मिलने आते हैं और मिठाइयाँ बाँटते हैं। अब जानते हैं कि पूजा में खील और बताशा क्यों चढ़ाते हैं।
खील और बताशे का महत्व
दीवाली की पूजा में खील-बताशे चढ़ाने के कई व्यावहारिक, दार्शनिक, और ज्योतिषीय कारण हैं। खील, जो मूलतः धान का ही एक रूप है, चावल से बनाई जाती है, और चावल उत्तर भारत का मुख्य अनाज माना जाता है। दिवाली के समय धान की पहली फसल तैयार होती है। पहली फसल को लक्ष्मी मां को चढ़ाने से वह प्रसन्न होती हैं और घर को धन-धान्य से भर देती हैं।
ज्योतिषीय कारण
ज्योतिष के अनुसार सफेद और मीठे बताशों का संबंध शुक्र ग्रह से होता है, जो धन और समृद्धि का कारक माने जाते हैं। इस तरह शुक्र ग्रह और मां लक्ष्मी की कृपा पाने के लिए पूजा में खील और बताशे प्रमुखता से चढ़ाए जाते हैं। इसके अलावा, इस मौसम में खील का सेवन स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी होता है।
अन्य लाभ
खील में प्रचुर मात्रा में कार्बोहाइड्रेट होता है, जो शरीर को तुरंत ऊर्जा प्रदान करता है। इसके साथ ही यह एंटीऑक्सीडेंट गुणों से भरपूर होता है, जो कई बीमारियों से बचाव में सहायक है। यदि इसे देसी घी के साथ खाया जाए तो यह मेटाबॉलिज्म को बढ़ाकर वजन घटाने में भी सहायक होता है। चावल और चीनी से बने खील-बताशे पचने में आसान होते हैं और इसी कारण दिवाली पर इन्हें एक महत्वपूर्ण प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता है।
