लखनऊ। उत्तर प्रदेश के संभल में मंदिर की खुदाई के दौरान 46 साल पुरानी एक दंगे की कहानी फिर सुर्खियों में है। 1978 में हुए इस भीषण दंगे में 184 हिंदुओं की हत्या हुई थी और यही वह घटना थी जिसकी वजह से इस मंदिर पर ताला जड़ दिया गया था। 46 साल बाद अब जाकर यह ताला खुला है, लेकिन सवाल यह है कि इस हिंसा के पीछे कौन जिम्मेदार था और आखिर क्यों किसी गुनहगार को सजा नहीं मिली।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हाल ही में यूपी विधानसभा में संभल में हुई हिंसा की घटनाओं की पूरी कड़ी को सामने रखा। उन्होंने बताया कि 1947 से 2024 के बीच संभल में हुई सांप्रदायिक हिंसा में कुल 209 हिंदुओं की हत्या हुई, जिसमें से 184 हत्याएं सिर्फ 1978 के दंगे में हुई थीं। 29 मार्च 1978 को संभल में सांप्रदायिक हिंसा भड़क उठी और हालात इतने बिगड़े कि सरकार को पूरे एक महीने तक कर्फ्यू लगाना पड़ा। सैकड़ों परिवारों को पलायन करना पड़ा। इस दंगे की जांच यूपी पुलिस ने की, लेकिन सबूतों के अभाव में 2010 में सभी 48 आरोपी दोषमुक्त हो गए।
1978 के इस दंगे के दौरान उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री राम नरेश यादव थे, जो जनता पार्टी की सरकार का नेतृत्व कर रहे थे। यह वही जनता पार्टी थी जिसमें कांग्रेस (ओ), लोकदल और जनसंघ जैसे दल शामिल थे। जनसंघ, जिसने बाद में 1980 में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का रूप लिया। राम नरेश यादव की कैबिनेट में जनसंघ और लोकदल दोनों के मंत्री थे, जिनमें केशरी नाथ त्रिपाठी, कल्याण सिंह, मुलायम सिंह यादव और अन्य प्रमुख नेता शामिल थे।
इस सरकार के गृहमंत्री राम सिंह थे, जिनके पास प्रदेश की कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी थी। हालांकि, दंगा शुरू होने के बाद प्रशासन हालात पर काबू पाने में नाकाम रहा।
दंगे के बाद यह मंदिर बंद कर दिया गया था। दशकों तक इस पर लगा ताला 1978 की हिंसा की गवाही देता रहा। अब मंदिर खुलने और खुदाई शुरू होने के साथ, यह सवाल एक बार फिर सामने है कि 46 साल पहले हुए इस दंगे में सैकड़ों जानें जाने के बाद भी कोई न्याय क्यों नहीं हुआ।