Arunachaleshwarar Temple : भारत में भगवान शिव के अनेक मंदिर हैं, जिनमें से प्रत्येक की अपनी विशेष कथा और धार्मिक महत्व है। ऐसा ही एक अद्वितीय मंदिर है, जो विश्व का सबसे बड़ा शिव मंदिर माना जाता है। यह मंदिर तमिलनाडु के तिरुवन्नामलाई जिले में स्थित अरुणाचलेश्वर मंदिर (Arunachaleshwarar Temple) है। मान्यता है कि इसी स्थान पर भगवान शिव ने ब्रह्मा जी को श्राप दिया था। इस मंदिर की परिक्रमा करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएँ पूरी होती हैं। आइए, इस भव्य मंदिर के रहस्यमयी इतिहास और धार्मिक महत्व को विस्तार से जानते है

Arunachaleshwarar Temple : महादेव का विशालतम धाम
तमिलनाडु के तिरुवन्नामलाई जिले में अन्नामलाई पर्वत की तलहटी में स्थित यह भव्य मंदिर अरुणाचलेश्वर मंदिर (Arunachaleshwarar Temple) के नाम से प्रसिद्ध है। सावन के महीने में यहाँ श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है, जो दूर-दूर से भगवान शिव का अभिषेक करने आते हैं। विशेष रूप से कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर यहाँ विशाल मेले का आयोजन किया जाता है। श्रद्धालु अन्नामलाई पर्वत की 14 किलोमीटर लंबी परिक्रमा कर भगवान शिव से अपनी इच्छाएँ पूर्ण करने की प्रार्थना करते हैं।

अग्नि स्वरूप में होती है शिव की पूजा
मान्यता है कि यह वही स्थान है जहाँ भगवान शिव ने ब्रह्मा जी को श्राप दिया था। यहाँ स्थित अरुणाचलेश्वर मंदिर (Arunachaleshwarar Temple) में भगवान शिव अग्नि स्वरूप में पूजे जाते हैं। मंदिर की प्रमुख मूर्ति ‘लिंगोत्भव’ के रूप में प्रतिष्ठित है, जिसमें भगवान शिव को अग्नि रूप में, भगवान विष्णु को उनके चरणों में वराह अवतार में और ब्रह्मा जी को हंस के रूप में दर्शाया गया है।
मंदिर परिसर में स्थापित आठ शिवलिंग
अन्नामलाई पर्वत तक जाने के मार्ग में आठ शिवलिंग स्थापित हैं, जिन्हें इंद्र, अग्निदेव, यम, निरूति, वरुण, वायु, कुबेर और ईशान देव ने पूजा था। ऐसा विश्वास है कि इस मंदिर की यात्रा नंगे पैर करने से भक्तों को उनके पापों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
शिव पुराण में वर्णित कथा
शिव पुराण के अनुसार, एक बार भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी के बीच यह विवाद हुआ कि उनमें से कौन अधिक श्रेष्ठ है। इस विवाद को सुलझाने के लिए उन्होंने भगवान शिव की शरण ली। शिवजी ने परीक्षा लेने के लिए अपने अनंत स्वरूप को एक प्रकाश स्तंभ के रूप में प्रकट किया और कहा कि जो कोई इसका आदि या अंत खोज लेगा, वही श्रेष्ठ होगा।
भगवान विष्णु ने वराह (सूअर) का रूप लेकर भूमि में खुदाई शुरू की, जबकि ब्रह्मा जी हंस का रूप लेकर आकाश की ऊँचाइयों में चले गए। विष्णु जी तो अपनी असफलता स्वीकार कर लौट आए, लेकिन ब्रह्मा जी ने छल किया। उन्होंने केवड़ा पुष्प से झूठी गवाही दिलवाई कि उन्होंने शिव के शीर्ष को देखा है।
भगवान शिव इस छल को समझ गए और क्रोधित होकर ब्रह्मा जी को श्राप दिया कि धरती पर उनकी पूजा नहीं होगी। साथ ही, केवड़ा फूल को भी श्राप दिया कि उसे शिव पूजा में स्थान नहीं मिलेगा।
अरुणाचलेश्वर मंदिर की परिक्रमा का महत्व
यह माना जाता है कि इस मंदिर (Arunachaleshwarar Temple) में आने वाले श्रद्धालुओं की सभी इच्छाएँ पूरी होती हैं। भक्त यहाँ अन्नामलाई पर्वत की 14 किलोमीटर लंबी परिक्रमा करते हैं, जिसे गिरिवलम कहा जाता है। प्रत्येक पूर्णिमा को यह परिक्रमा करने का विशेष महत्व माना जाता है।
कार्तिक पूर्णिमा का भव्य मेला
अरुणाचलेश्वर मंदिर में हर वर्ष कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर एक भव्य मेले का आयोजन किया जाता है। इसे ‘कार्तिक दीपम’ के नाम से जाना जाता है। इस दिन मंदिर में एक विशाल दीपक प्रज्ज्वलित किया जाता है, जिसे देखने के लिए लाखों श्रद्धालु एकत्रित होते हैं।
मंदिर के दर्शन का समय सुबह 5:30 बजे से रात 9 बजे तक निर्धारित है। यहाँ नियमित रूप से भक्तों के लिए अन्नदान की भी व्यवस्था की जाती है।
अरुणाचलेश्वर मंदिर (Arunachaleshwarar Temple) न केवल अपनी भव्यता के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि इसकी ऐतिहासिक और धार्मिक मान्यता भी इसे अनूठा बनाती है। यह स्थान शिव भक्तों के लिए अत्यंत पवित्र है, जहाँ आकर श्रद्धालु अपने पापों से मुक्ति और मनोकामनाओं की पूर्ति का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।