वाराणसी। क्रोनिक किडनी डिजीज (CKD) का कोई स्थायी इलाज नहीं है और इसके उपचार के लिए डायलिसिस और किडनी ट्रांसप्लांट जैसे विकल्प सीमित हैं, विशेषकर निम्न आय वाले देशों में। इस चुनौती को दूर करने के उद्देश्य से भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (का.हि.वि.) वाराणसी के शोधकर्ताओं ने एक सस्ती और प्रभावी पेपर माइक्रोचिप डिवाइस विकसित की है जो किडनी रोग के निदान में बड़ा बदलाव ला सकती है। इस डिवाइस का विकास स्कूल ऑफ बायोकैमिकल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर प्रांजल चंद्रा और उनकी पीएचडी छात्रा दिव्या ने किया है। यह डिवाइस पारंपरिक महंगे और समय-खपत वाले प्रयोगशाला परीक्षणों का सरल, तेज़ और किफायती विकल्प है।
प्रोफेसर प्रांजल चंद्रा के अनुसार, क्रोनिक किडनी डिजीज (CKD) एक वैश्विक स्वास्थ्य संकट बन चुकी है, जो दुनिया भर में 800 मिलियन से अधिक लोगों को प्रभावित कर रही है। वैश्विक जनसंख्या का 10% से अधिक हिस्सा इससे प्रभावित है। पिछले दो दशकों में CKD से होने वाली मृत्यु दर में 42% की वृद्धि हुई है, जिससे समय पर निदान और उपचार की आवश्यकता और स्पष्ट हो गई है। ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज स्टडी का अनुमान है कि CKD 2040 तक मृत्यु के 5वें प्रमुख कारण के रूप में उभर सकती है। यह बीमारी विशेष रूप से हृदय रोगियों और गर्भावस्था संबंधी समस्याओं से ग्रस्त महिलाओं में अधिक प्रचलित है।
प्रोफेसर चंद्रा ने बताया कि इस पेपर माइक्रोचिप का निर्माण सामान्य फिल्टर पेपर को नैनोइंजीनियरिंग के माध्यम से संशोधित करके किया गया है। यह दो प्रमुख बायोमार्कर – क्रेटिनिन और एल्ब्यूमिन की पहचान करने में सक्षम है। क्रेटिनिन को स्मार्टफोन आधारित इमेजिंग सिस्टम से मापा जाता है, जबकि एल्ब्यूमिन का स्तर स्वदेशी 3D-प्रिंटेड कैस्केड की मदद से जांचा जाता है। इस डिवाइस में ‘CretCheck’ नामक सॉफ़्टवेयर का भी उपयोग किया गया है, जो परिणामों को स्वतः संसाधित कर स्वस्थ और रोगग्रस्त व्यक्तियों के लिए क्रमशः हरा (ग्रीन) और लाल (रेड) संकेत प्रदर्शित करता है।
प्रोफेसर चंद्रा ने इस डिवाइस के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि यह विशेष रूप से प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों के लिए मील का पत्थर साबित हो सकता है, जहां संसाधनों की कमी होती है। पारंपरिक परीक्षणों के मुकाबले यह डिवाइस महंगे उपकरणों और लंबी प्रतीक्षा अवधि के बिना मात्र 10 मिनट में परिणाम देने में सक्षम है। इस डिवाइस का पहले ही विभिन्न रोगी नमूनों पर परीक्षण किया जा चुका है और इसके परिणाम Elsevier और American Chemical Society जैसी प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैं।
प्रोफेसर चंद्रा ने इस शोध के लिए आईआइटी (बीएचयू) के निदेशक का आभार व्यक्त किया, जिन्होंने इस प्रयास को प्रोत्साहन और आवश्यक संसाधन प्रदान किए। उन्होंने कहा कि यह डिवाइस Make in India और Start-up India जैसे राष्ट्रीय मिशनों के अनुरूप है, जो घरेलू नवाचार और उद्यमिता को बढ़ावा देते हैं।
संस्थान के निदेशक, प्रोफेसर अमित पात्रा ने इस उपलब्धि के लिए प्रोफेसर चंद्रा और उनकी टीम को बधाई देते हुए कहा कि यह शोध स्वास्थ्य क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव लाने की क्षमता रखता है।