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ज्ञानवापी केस: योगेंद्र नाथ व्यास की पुनरीक्षण याचिका खारिज, सिविल जज का आदेश बरकरार

ज्ञानवापी मामले में कोर्ट ने योगेंद्र नाथ व्यास की पुनरीक्षण याचिका खारिज कर दी। अपर जिला जज ने स्पष्ट किया कि वह आवश्यक पक्षकार नहीं हैं। सिविल जज का पूर्व आदेश विधिसम्मत पाया गया और उसे बरकरार रखा गया।

 
ज्ञानवापी केस
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वाराणसी: ज्ञानवापी परिसर में नए मंदिर निर्माण और हिंदुओं को पूजा-पाठ का अधिकार दिलाने से जुड़े वर्ष 1991 के बहुचर्चित मुकदमे में गुरुवार को अहम न्यायिक निर्णय सामने आया है। अपर जिला जज (चौदहवां) सुधाकर राय की अदालत ने पं. सोमनाथ व्यास के भतीजे योगेंद्र नाथ व्यास द्वारा दाखिल पुनरीक्षण (निगरानी) याचिका को निरस्त कर दिया है।

अदालत ने स्पष्ट किया कि योगेंद्र नाथ व्यास इस मामले में न तो आवश्यक पक्षकार हैं और न ही उचित पक्षकार। ऐसे में उन्हें मुकदमे में शामिल किए जाने का कोई कानूनी आधार नहीं बनता।

अदालत की अहम टिप्पणियां

अपर जिला जज ने अपने आदेश में कहा कि यह वाद प्रतिनिधि वाद की श्रेणी में आता है, जिसे न्यायालय की अनुमति से चलाया जा रहा है। प्रतिनिधि वाद होने के कारण पक्षकारों की मृत्यु के बाद उत्तराधिकार (वरासत) के आधार पर प्रतिस्थापन का प्रावधान इस मामले में लागू नहीं होता।

अदालत ने यह भी कहा कि सिविल जज (सीनियर डिवीजन, फास्ट ट्रैक) द्वारा 16 जनवरी 2025 को पारित आदेश में किसी प्रकार की विधिक त्रुटि, अवैधता या अनियमितता नहीं है। इसलिए उसमें किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है। परिणामस्वरूप पुनरीक्षण याचिका को खारिज करते हुए सिविल जज का आदेश पूर्ण रूप से पुष्ट कर दिया गया।

क्या है पूरा मामला?

गौरतलब है कि ज्ञानवापी, चौक निवासी योगेंद्र नाथ व्यास ने 22 अगस्त 2024 को सिविल जज (सीनियर डिवीजन, फास्ट ट्रैक) की अदालत में एक प्रार्थना पत्र दाखिल कर स्वयं को वाद संख्या 610/1991 में पक्षकार बनाए जाने की मांग की थी।

प्रार्थना पत्र में उन्होंने दावा किया था कि मुकदमे में वर्णित व्यास गद्दी, महर्षि व्यास द्वारा स्थापित है और पीढ़ी दर पीढ़ी उनके परिवार द्वारा उसका दायित्व निभाया जाता रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि वर्तमान वाद मित्र विजय शंकर रस्तोगी इस जिम्मेदारी के निर्वहन में सक्षम नहीं हैं और उनके पास मुकदमे से जुड़े महत्वपूर्ण साक्ष्य उपलब्ध हैं।

हालांकि, इस आवेदन पर वाद मित्र विजय शंकर रस्तोगी, अंजुमन इंतजामिया मसाजिद और सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड की ओर से कड़ी आपत्तियां दर्ज की गई थीं।

पहले ही खारिज हो चुका था आवेदन

सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद तत्कालीन सिविल जज (सीनियर डिवीजन, फास्ट ट्रैक) युगुल शंभू ने 16 जनवरी 2025 को योगेंद्र नाथ व्यास का आवेदन खारिज कर दिया था। इसी आदेश को चुनौती देते हुए उन्होंने जिला जज की अदालत में पुनरीक्षण याचिका दाखिल की थी, जिसे सुनवाई के लिए अपर जिला जज (14वां) की अदालत में भेजा गया था। अब इस याचिका के खारिज होने के बाद, सिविल जज का पूर्व आदेश अंतिम रूप से बरकरार हो गया है।