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150 साल बाद फिर सुर्खियों में ‘वंदे मातरम’ : संसद में छिड़ी बहस, क्या वाकई हटाए गए थे इसके कुछ हिस्से? जानें पूरा मामला

 
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आजादी की लड़ाई में करोड़ों भारतीयों के दिलों में जोश भरने वाला गीत ‘वंदे मातरम’ एक बार फिर राष्ट्रीय बहस के केंद्र में आ चुका है। इसकी 150वीं वर्षगांठ पर संसद में आयोजित विशेष चर्चा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के संबोधन के बाद पुराना राजनीतिक विवाद फिर उभर आया। इस गीत को लेकर कई सवाल उठने लगे, क्या इसके कुछ हिस्से हटाए गए थे? विवाद की शुरुआत कब हुई? और आखिर यह मुद्दा बार-बार क्यों भड़कता है? आइए इसके बारे में विस्तार से जानते है...

पीएम मोदी ने संसद में क्या कहा?

लोकसभा में बोलते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि जब वंदे मातरम 50 साल का हुआ, तब देश गुलामी में जकड़ा था। जब 100 साल पूरे हुए, तब देश आपातकाल की बेड़ियों में बंधा था। यह गीत 1857 के विद्रोह के बाद लिखी गई ऐसी रचना है, जो अंग्रेजी शासन की बर्बरता के बीच देशवासियों में हिम्मत और प्रेरणा जगाती थी।

मोदी ने कांग्रेस पर आरोप लगाया कि उसने सामाजिक समरसता के नाम पर वंदे मातरम को कमजोर किया और तुष्टिकरण की राजनीति के चलते इसके साथ अन्याय किया।

वंदे मातरम कैसे बना राष्ट्रगीत?

1875 में बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने ‘वंदे मातरम’ कविता लिखी, जिसका अर्थ है- "मां, मैं तुम्हें प्रणाम करता हूं। यह पहली बार साहित्यिक पत्रिका बंगदर्शन में प्रकाशित हुआ। बाद में रवींद्रनाथ टैगोर ने इसे संगीतबद्ध किया। 1937 में कांग्रेस ने इसके संशोधित संस्करण को राष्ट्रगीत का दर्जा दिया। 1951 में डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने संविधान सभा में इसे आधिकारिक रूप से राष्ट्रगीत घोषित किया, जबकि ‘जन गण मन’ को राष्ट्रगान।

आज यह गीत भारत की सांस्कृतिक और राष्ट्रवादी चेतना में गहराई से समाया हुआ है।

संसद में विवाद क्यों उठा?

8 दिसंबर को लोकसभा और राज्यसभा दोनों में वंदे मातरम के 150 वर्ष पूरे होने पर विशेष सत्र आयोजित किया गया। लोकसभा में 10 घंटे की चर्चा हुई, जिसकी शुरुआत पीएम मोदी ने की। गृह मंत्री अमित शाह ने अगले दिन राज्यसभा में सरकार की तरफ से चर्चा जारी रखी, लेकिन चर्चा के दौरान यह मुद्दा राजनीतिक टकराव में बदल गया।

पुराना विवाद: क्या मुस्लिम समुदाय को आपत्ति थी?

मोदी ने अपने भाषण में जवाहरलाल नेहरू के एक पुराने पत्र का हवाला दिया। उनके अनुसार यह पत्र मोहम्मद अली जिन्ना के विरोध के बाद लिखा गया था। नेहरू ने लिखा था कि वंदे मातरम की पृष्ठभूमि और कुछ पंक्तियाँ मुसलमानों को नाराज कर सकती हैं।

यह वही आरोप है जिसके आधार पर वर्षों से राजनीतिक बहस छिड़ती रही है कि क्या राष्ट्रगीत के कुछ हिस्सों को धार्मिक आपत्तियों के चलते कम महत्व दिया गया था।