वंदे मातरम के 150 वर्ष: संसद में आज विशेष चर्चा, पीएम मोदी करेंगे संबोधन
नई दिल्ली I भारत के राष्ट्रीय गीत ‘वंदे मातरम’ के रचनाकाल के 150 वर्ष पूरे होने पर आज देश एक ऐतिहासिक पल का साक्षी बनेगा। संसद के दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) में इस अवसर पर विशेष चर्चा होगी, जिसकी शुरुआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संबोधन से होगी।
सात नवंबर 1875 को बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा रचित यह अमर गीत भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की आत्मा बना और लाखों देशवासियों को आजादी की ज्वाला प्रदान की। 1950 में संविधान सभा ने इसे सर्वसम्मति से राष्ट्रीय गीत का दर्जा दिया था।
वंदे मातरम का गौरवशाली सफर
- 1875: बंगदर्शन पत्रिका में पहली बार प्रकाशित
- 1882: बंकिम चंद्र के उपन्यास ‘आनंदमठ’ में शामिल
- 1896: रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा संगीतबद्ध, कलकत्ता कांग्रेस अधिवेशन में पहली बार सार्वजनिक गायन
- 1905: बंग-भंग आंदोलन में राजनीतिक नारा बना, स्वदेशी आंदोलन का प्रतीक
- 1907: मैडम भीकाजी कामा ने स्टुटगार्ट में तिरंगे पर लिखकर फहराया
- क्रांतिकारियों के अंतिम शब्द बने – मदनलाल धींगरा से लेकर अनगिनत शहीदों ने फांसी से पहले यही जयघोष लगाया
आनंदमठ में भारत माता का त्रिरूप
उपन्यास में मां भारती के तीन स्वरूप दर्शाए गए हैं – भूतकाल की गौरवशाली माता, वर्तमान की पीड़ित माता और भविष्य की शक्तिशाली, तलवारधारी माता। अरविंदो घोष ने इसे “सत्तर करोड़ हाथों में तलवार लिए भारत माता” कहा था।
देशभर में 150वें वर्ष का भव्य उत्सव
- दिल्ली के इंदिरा गांधी इंडोर स्टेडियम में राष्ट्रीय उद्घाटन समारोह
- जिला-तहसील स्तर तक 7 नवंबर को विशेष आयोजन
- डाक टिकट, स्मारक सिक्का और विशेष प्रदर्शनी जारी
- आकाशवाणी व दूरदर्शन पर विशेष कार्यक्रम
- विदेशों में भारतीय दूतावासों में संगीत-सांस्कृतिक कार्यक्रम व वृक्षारोपण
‘वंदे मातरम : सैल्यूट टू मदर अर्थ’ अभियान
देशभर में बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण और भित्ति-चित्र (वॉल पेंटिंग) अभियान चलाया जा रहा है, ताकि नई पीढ़ी को मातृभूमि की सेवा का संदेश मिले। 150 वर्ष बाद भी ‘वंदे मातरम’ हर भारतीय के हृदय में जीवंत है। यह गीत न केवल स्वतंत्रता संग्राम का प्रतीक है, बल्कि आज भी देश की एकता, संस्कृति और आत्मगौरव की सबसे सशक्त आवाज बना हुआ है।
