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देश में पहली बार कबूतरों को दाना खिलाने पर सजा, मुंबई कोर्ट का सख्त फैसला

मुंबई की अदालत ने सार्वजनिक स्थान पर कबूतरों को दाना खिलाने को स्वास्थ्य के लिए खतरनाक मानते हुए एक व्यक्ति पर ₹5000 का जुर्माना लगाया। कोर्ट ने कहा कि कबूतरों की बीट से जानलेवा संक्रमण फैलने का खतरा है। यह देश का पहला ऐसा मामला माना जा रहा है।
 
कबूतरों को दाना खिलाने पर सजा
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सार्वजनिक स्थानों पर कबूतरों को दाना खिलाने को लेकर मुंबई की एक अदालत ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। यह संभवतः देश का पहला मामला है, जिसमें कबूतरों को दाना खिलाने को जनस्वास्थ्य के लिए खतरा मानते हुए दोषी को सजा दी गई है। अदालत ने आरोपी पर 5000 रुपये का जुर्माना लगाया है।

यह फैसला ऐसे समय आया है, जब बृहन्मुंबई नगर निगम (BMC) पहले ही शहर के कई इलाकों में कबूतरों को दाना खिलाने पर प्रतिबंध लगा चुका है। निगम का कहना है कि इससे संक्रमण फैलने और लोगों की जान को खतरा पैदा हो सकता है।

क्या है पूरा मामला?

दादर निवासी 52 वर्षीय कारोबारी नितिन सेठ को 1 अगस्त को माहिम इलाके के बंद हो चुके ‘कबूतरखाना’ में कबूतरों को दाना खिलाते हुए पकड़ा गया था। पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर अदालत में पेश किया।

बांद्रा के अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट वी.यू. मिसाल ने आरोपी को भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 223 (b) – मानव जीवन, स्वास्थ्य या सुरक्षा को खतरे में डालने, और धारा 271 – लापरवाही से जानलेवा बीमारी फैलाने के आरोप में दोषी ठहराया।

कबूतरों से फैलने वाली बीमारियों पर कोर्ट की सख्ती

अदालत ने अपने आदेश में कहा कि कबूतरों की बीट (मल) में मौजूद खतरनाक बैक्टीरिया और फंगस गंभीर बीमारियों का कारण बन सकते हैं।

नवंबर 2023 में मुंबई की एक 53 वर्षीय महिला को कबूतरों की सूखी बीट के संपर्क में आने से हाइपरसेंसिटिविटी न्यूमोनाइटिस नामक गंभीर फेफड़ों की बीमारी हो गई थी, जिसके बाद उसे लंग ट्रांसप्लांट कराना पड़ा।

इससे पहले, 2019 में स्कॉटलैंड के ग्लासगो में दो मरीजों की मौत, और अमेरिका की CDC तथा WHO द्वारा भी कबूतरों से फैलने वाले संक्रमणों को गंभीर खतरा बताया जा चुका है।

हाई कोर्ट भी जता चुका है चिंता

अगस्त में बॉम्बे हाई कोर्ट ने भी टिप्पणी की थी कि कबूतरों की वजह से बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक सभी की सेहत को खतरा हो सकता है और उनके मल से कई जानलेवा बीमारियां फैल सकती हैं। यह फैसला एक स्पष्ट संदेश है कि धार्मिक या भावनात्मक कारणों से किए गए कार्य भी अगर जनस्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाते हैं, तो कानून सख्ती से कार्रवाई करेगा।