ज्ञानपीठ से सम्मानित साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल का निधन, 89 वर्ष की उम्र में ली अंतिम सांस
रायपुर। हिंदी के प्रख्यात साहित्यकार और ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित विनोद कुमार शुक्ल का मंगलवार की शाम निधन हो गया। वे 89 वर्ष के थे। रायपुर एम्स के अनुसार उन्होंने शाम करीब 4:58 बजे अंतिम सांस ली। उनके निधन से हिंदी साहित्य जगत में शोक की लहर दौड़ गई है।
परिवार की ओर से मिली जानकारी के अनुसार, श्वसन संबंधी दिक्कतों के चलते उन्हें 2 दिसंबर को AIIMS रायपुर में भर्ती कराया गया था। इससे पहले अक्टूबर में भी सांस लेने में परेशानी के बाद वे एक निजी अस्पताल में भर्ती हुए थे और सुधार के बाद घर पर इलाज चल रहा था। अचानक तबीयत बिगड़ने पर उन्हें फिर एम्स लाया गया, जहां उपचार के दौरान उनका निधन हो गया।
परिवार और अंतिम संस्कार
विनोद कुमार शुक्ल के परिवार में उनकी पत्नी, पुत्र शाश्वत शुक्ल और एक पुत्री हैं। शाश्वत शुक्ल ने बताया कि पार्थिव शरीर को पहले उनके निवास पर ले जाया जाएगा। अंतिम संस्कार से संबंधित जानकारी शीघ्र दी जाएगी।
साहित्यिक विरासत
‘नौकर की कमीज’, ‘खिलेगा तो देखेंगे’, ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ और ‘एक चुप्पी जगह’ जैसी कालजयी कृतियों से साधारण जीवन की गरिमा रचने वाले विनोद कुमार शुक्ल को 59वां ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया गया था। 21 नवंबर को रायपुर स्थित उनके निवास पर आयोजित समारोह में उन्हें यह सम्मान दिया गया था।
देशभर से शोक संदेश
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके निधन पर शोक जताते हुए कहा, “ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित प्रख्यात लेखक विनोद कुमार शुक्ल जी के निधन से अत्यंत दुख हुआ है। हिंदी साहित्य में उनके अमूल्य योगदान के लिए वे हमेशा स्मरणीय रहेंगे। शोक की इस घड़ी में मेरी संवेदनाएं उनके परिजनों और प्रशंसकों के साथ हैं। ओम शांति।” गौरतलब है कि प्रधानमंत्री ने पिछले महीने 1 नवंबर को उनसे फोन पर बात कर उनके स्वास्थ्य का हाल भी जाना था।
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने इसे राज्य और देश के लिए बड़ी क्षति बताते हुए कहा कि विनोद कुमार शुक्ल की संवेदनशील रचनाएं पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेंगी।
वहीं, कांग्रेस नेता और पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने उनके निधन को अपूरणीय साहित्यिक क्षति बताया और दिवंगत आत्मा की शांति की कामना की।
