बड़ोदरा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार, 28 अक्टूबर को गुजरात के बड़ोदरा में टाटा एडवांस्ड सिस्टम्स लिमिटेड (TASL) के टाटा एयरक्राफ्ट कॉम्प्लेक्स का उद्घाटन किया। यह परियोजना “मेक इन इंडिया” पहल के तहत भारत में निजी क्षेत्र का पहला सैन्य विमान असेंबली संयंत्र है। इस कार्यक्रम में स्पेन के प्रधानमंत्री पेड्रो सांचेज भी शामिल हुए, जो भारत-स्पेन रक्षा साझेदारी को मजबूत करने का प्रतीक है।
C-295 विमान: आत्मनिर्भर भारत की ओर एक बड़ा कदम
सी-295 परियोजना के तहत कुल 56 विमानों का निर्माण किया जाएगा। इनमें से 16 विमान सीधे स्पेन से आयात किए जाएंगे, जबकि शेष 40 विमानों का निर्माण बड़ोदरा में किया जाएगा। यह संयंत्र टाटा एडवांस्ड सिस्टम्स और एयरबस स्पेन के संयुक्त सहयोग से स्थापित हुआ है और भारत के सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (MSMEs) को भी इसमें बड़ी भूमिका मिलेगी।
प्रधानमंत्री मोदी ने इस दौरान कहा कि टाटा-एयरबस संयंत्र में कम से कम 18,000 पुर्जों का निर्माण भारत के MSMEs द्वारा किया जाएगा, जिससे रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे।
C-295 एयरक्राफ्ट की प्रमुख विशेषताएं
- यह विमान केवल 844 मीटर लंबे रनवे से उड़ान भर सकता है और 420 मीटर में लैंड कर सकता है।
- यह विमान एक बार में 71 सैनिकों को ले जा सकता है और 9 टन तक का सामान ढो सकता है।
- C-295 विमान लगातार 11 घंटे तक उड़ान भर सकता है।
- ऑपरेशनल जरूरतों के दौरान इसे हवा में भी रिफ्यूल किया जा सकता है।
- विमान की गति 482 किमी/घंटा है और यह एक इंजन से 13,533 फीट की ऊंचाई तक और दोनों इंजनों के साथ 30,000 फीट की ऊंचाई तक उड़ान भर सकता है।
- इसमें छह हार्डपॉइंट्स हैं, जहां 800 किलोग्राम तक के हथियार और बचाव प्रणाली लगाई जा सकती है।
‘मेक इन इंडिया, मेक फॉर द वर्ल्ड’ का विस्तार
कार्यक्रम के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने भारत-स्पेन संबंधों पर जोर देते हुए कहा कि यह संयंत्र केवल भारत की जरूरतों को पूरा नहीं करेगा बल्कि ‘मेक इन इंडिया, मेक फॉर द वर्ल्ड’ मिशन को भी मजबूत करेगा।
पीएम मोदी ने उद्योगपति रतन टाटा के हालिया निधन का जिक्र करते हुए कहा कि हमने हाल ही में रतन टाटा को खो दिया। अगर वे आज हमारे साथ होते, तो उन्हें इस प्रगति पर गर्व होता।
रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भरता की दिशा में बड़ा कदम
यह संयंत्र भारतीय वायुसेना के पुराने एवरो विमानों को बदलने में मदद करेगा और भारत को सैन्य विमान उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है।
इस परियोजना के सफल कार्यान्वयन से भारत न केवल अपनी रक्षा जरूरतों को पूरा करेगा बल्कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए तैयार होगा।