Rangbhari Ekadashi : काशी की पालकी शोभायात्रा विवाद, परंपरा में बदलाव से भक्त नाराज

Varanasi : काशी में हर साल रंगभरी एकादशी (Rangbhari Ekadashi) पर आयोजित होने वाली गौरा के गौना की पारंपरिक पालकी शोभायात्रा इस बार विवादों में घिर गई है। टेढ़ीनीम स्थित पूर्व महंत आवास से शुरू होने वाली इस शोभायात्रा में मंदिर प्रशासन के हस्तक्षेप और अचानक किए गए बदलावों ने काशीवासियों और बाबा विश्वनाथ के भक्तों में नाराजगी पैदा कर दी है। समय में परिवर्तन और पालकी को ढकने के अभूतपूर्व फैसले ने रंगभरी एकादशी 2025 के आयोजन को लेकर तनाव बढ़ा दिया है।

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प्रशासन और पूर्व महंत परिवार के बीच बढ़ा विवाद:-

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परंपरा के अनुसार, काशी पालकी शोभायात्रा की तैयारियां पहले से शुरू हो गई थीं। 3 मार्च को मंदिर प्रशासन और संबंधित विभागों को निमंत्रण पत्र भेजे गए थे और 7 मार्च से महंत आवास पर धार्मिक लोकाचार शुरू हो गए थे। लेकिन 10 मार्च को जब शोभायात्रा निकलने वाली थी, प्रशासन ने धारा 168 बी के तहत नोटिस जारी कर इसे रोकने की कोशिश की। स्वर्गीय महंत डॉ. कुलपति तिवारी के पुत्र पं. वाचस्पति तिवारी ने प्रशासन (Administration) पर षड्यंत्र का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि नोटिस में महंत के निधन के बाद परंपरा को बंद करने का उल्लेख था और इसमें शामिल भक्तों को अराजकतावादी करार दिया गया।

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भक्तों का आक्रोश, प्रशासन को पीछे हटना पड़ा :-

प्रशासन के इस कदम से काशी के स्थानीय लोग और बाबा विश्वनाथ के भक्तों में गहरी नाराजगी फैल गई। बढ़ते विरोध को देखते हुए मंदिर प्रशासन को अपने फैसले पर पुनर्विचार करना पड़ा, लेकिन शोभायात्रा में कई बदलाव लागू कर दिए गए। पं. वाचस्पति तिवारी ने दावा किया कि पारंपरिक मार्ग और समय में बदलाव किया गया, साथ ही प्रशासन ने प्रतिमा को मंदिर परिसर में एक निश्चित स्थान पर रखकर लोकाचार पूरा करने का आदेश दिया। यह परंपरा से अलग था, जिसमें महंत आवास से निकली प्रतिमा को गर्भगृह में स्थापित कर सप्तर्षि आरती की जाती थी।

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ढकी पालकी से आस्था पर सवाल :-

रंगभरी एकादशी पर महादेव की पालकी शोभायात्रा भक्तों की आस्था का प्रतीक है, लेकिन इस बार प्रशासन ने पालकी को ढकने और प्रतिमा को गर्भगृह के बाहर कहीं न रखने का निर्देश दिया। पं. तिवारी ने आरोप लगाया कि काशी के जनप्रतिनिधियों, मंदिर प्रशासन और अधिकारियों के बीच चर्चा हुई, लेकिन कोई ठोस समाधान नहीं निकला। उन्होंने कहा कि प्रशासन ने महंत आवास की पारंपरिक भूमिका को नजरअंदाज कर सभी धार्मिक विधियों को मंदिर में ही पूरा करने का दबाव बनाया।

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