वाराणसी में आज धूमधाम से मनेगा अन्नकूट पर्व, मां अन्नपूर्णा को अर्पित होगा 511 क्विंटल मेवा-मिष्ठान का भोग
बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी आज अन्नकूट महापर्व की भव्यता में रंगी हुई है। बुधवार को भगवान श्रीकृष्ण के गोवर्धन स्वरूप की विशेष पूजा और अन्नकूट महोत्सव मनाया जाएगा। इस पावन अवसर पर भक्तगण भगवान को 56 प्रकार के व्यंजन (छप्पन भोग) अर्पित करेंगे।
अन्नकूट पूजा के शुभ मुहूर्त
जो भक्त सुबह पूजा करना चाहते हैं, उनके लिए अन्नकूट का सर्वश्रेष्ठ समय प्रातः 06:26 से 08:42 बजे तक रहेगा। वहीं दोपहर में पूजा करने वालों के लिए दूसरा शुभ समय 03:29 से शाम 05:44 बजे तक निर्धारित है।
काशी के 500 से अधिक मंदिरों में आज अन्नकूट का आयोजन होगा, जहां भगवान को छप्पन भोग अर्पित किए जाएंगे। सबसे अधिक श्रद्धालु जिन पांच प्रमुख मंदिरों में जुटेंगे, वे हैं अन्नपूर्णा मंदिर, श्री काशी विश्वनाथ मंदिर, दुर्गाकुंड मंदिर, धर्मसंघ मंदिर और इस्कॉन मंदिर।
अन्नपूर्णा मंदिर में भव्य तैयारी
मां अन्नपूर्णा के मंदिर में इस वर्ष 511 क्विंटल प्रसाद तैयार किया गया है। वहीं धर्मसंघ मंदिर में 151 क्विंटल और श्री काशी विश्वनाथ मंदिर में 14 क्विंटल का छप्पन भोग अर्पित किया जाएगा।
अन्नपूर्णा मंदिर में 105 कारीगरों की टीम ने प्रसाद तैयार किया है। विशेष बात यह है कि इस बार भी नेपाल, केरल और तमिलनाडु से विशेष मसाले और घी मंगवाए गए हैं।
महंत शंकर पुरी के अनुसार, इस बार 511 क्विंटल से अधिक भोग में 57 प्रकार की मिठाइयाँ और 17 तरह की नमकीन शामिल हैं। मां अन्नपूर्णा के स्वर्णमयी स्वरूप के दर्शन इस बार लगातार 254वें वर्ष हो रहे हैं।
अन्नकूट पर्व का पौराणिक महत्व
पंडित विकास पांडेय बताते हैं कि द्वापर युग में कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा के दिन देवताओं के राजा इंद्र की पूजा होती थी। जब बालक श्रीकृष्ण ने माता यशोदा से इसका कारण पूछा, तो उन्होंने बताया कि वर्षा से खेत-खलिहान और गायें फलती-फूलती हैं, इसलिए इंद्र की पूजा की जाती है।
तब श्रीकृष्ण ने कहा कि वर्षा का कारण तो गोवर्धन पर्वत है, जिसे इंद्र देव की जगह पूजना चाहिए। इंद्र को यह बात नागवार गुजरी और उन्होंने ब्रज में भयंकर वर्षा कर दी। तब भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी कनिष्ठिका अंगुली पर गोवर्धन पर्वत उठा लिया और सात दिनों तक सबकी रक्षा की। अंततः जब इंद्र का अहंकार टूट गया, तो उन्होंने श्रीकृष्ण से क्षमा मांगी। तभी से इस दिन को गोवर्धन पूजा और अन्नकूट पर्व के रूप में मनाया जाने लगा।
