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प्रकृति से जुड़ने का महापर्व छठ

 
Chhatth
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कृत -अमित श्रीवास्तव

छठ वास्तव में सूर्योपासना का पर्व है, इसलिए इसे सूर्य षष्ठी व्रत भी कहा जाता है। यह व्रत प्रकृति और मानव के बीच के संबंध को दर्शाता है। ऐसी मान्यता है कि सूर्य अराधना से सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।

प्रकृति से जुड़ने का महापर्व छठ 

छठ महापर्व बिहार और उत्तर प्रदेश का सबसे बड़ा पर्व है। छठ वास्तव में सूर्योपासना का पर्व है, इसलिए इसे सूर्य षष्ठी व्रत भी कहा जाता है। यह व्रत प्रकृति और मानव के बीच के संबंध को दर्शाता है। ऐसी मान्यता है कि सूर्य अराधना से सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है

👉 छठ माता से जुड़ी पौराणिक कथा

पौराणिक ग्रंथ श्वेताश्वतरोपनिषद् के अनुसार, छठ पूजा में होने वाली छठी मइया भगवान ब्रह्माजी की मानस पुत्री और सूर्यदेव की बहन हैं। इन्हीं मइया को प्रसन्न करने के लिए छठ पूजा का आयोजन किया जाता है। पुराणों के अनुसार, जब ब्रह्माजी सृष्टि की रचना कर रहे थे, तब उन्होंने अपने आपको दो भागों में बांट दिया था। ब्रह्माजी का दायां भाग पुरुष और बायां भाग प्रकृति के रूप में सामने आया। प्रकृति सृष्टि की अधिष्ठात्री देवी बनीं, जिनको प्रकृति देवी के नाम से जाना गया। प्रकृति देवी ने अपने आपको छह भागों में विभाजित कर दिया था और उनके छठे अंश को मातृ देवी या देवसेना के रूप में जाना जाता है। प्रकृति के छठे अंश होने के कारण इनका एक नाम षष्ठी भी पड़ा, जिसे छठी मइया के नाम से जाना जाता है। बच्चे के जन्म होने के बाद छठवें दिन जिस माता की पूजा की जाती है, यह वही षष्ठी देवी हैं। ऐसी मान्यता है कि षष्ठी देवी की आराधना करने पर बच्चे को आरोग्य और सफलता का आशीर्वाद मिलता है।

👉 36 घंटे तक होता है निर्जला व्रत

कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को छठ पूजा का महापर्व मनाया जाता है। यह पर्व चार दिनों तक मनाया जाता है। इस दिन छठी मैया और सूर्यदेव की उपासना की जाती है। इस व्रत को बहुत कठिन व्रत माना जाता है, क्योंकि इस व्रत में पूरे 36 घंटे तक निर्जला व्रत रखा जाता है। इस पूजा की खास बात ये है कि यह किसी एक वर्ग के लिए नहीं है, बल्कि ये कोई भी कर सकता है। चाहें वह महिला हो, पुरूष हो, युवा हों या युवती हों।

इस दिन नहीं की जाती है किसी भी मूर्ति की पूजा

छठ पूजा से जुड़े सभी अनुष्ठान प्रकृति और उसके आशीर्वाद पर केंद्रित हैं। इस त्योहार की सादगी और पवित्रता ही इस त्योहार को खास बनाती है। नकारात्मकता को दूर रखने और शरीर और आत्मा को शुद्ध रखने के लिए सभी अनुष्ठान किए जाते हैं। इस त्योहार की सबसे विशिष्ट विशेषता यह है कि अन्य सभी प्रमुख हिंदू त्योहारों के विपरीत इस दिन किसी भी मूर्ति की पूजा नहीं की जाती है।

👉 ऐसे शुरू हुए छठ पर्व को मनाने की परंपरा

पुराणों में वर्णिक कथा के मुताबिक राजा प्रियंवद की कोई संतान नहीं थी। तब महर्षि कश्यप ने पुत्र प्राप्ति के लिए उन्हें यज्ञ करावाने का आदेश दिया और प्रियंवद की पत्नी रानी मालिनी को यज्ञ आहुति से उत्पन प्रसाद को खाने के लिए कहा। इससे उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई, लेकिन वह मृत पैदा हुआ। प्रियंवद पुत्र को लेकर श्मशान गए और पुत्र वियोग में प्राण त्यागने लगे। तब ब्रह्मा जी की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुईं और उन्होंने कहा, ‘सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण मैं षष्ठी कहलाती हूं। राजन, तुम मेरी पूजा करो और इसके लिए दूसरों को भी प्रेरित करो।’ राजा ने पुत्र इच्छा से देवी षष्ठी का व्रत किया जिससे उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। उन्होंने यह पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को हुई थी। ताी से छठ को पर्व के रूप में मनाने और व्रत करने की परंपरा शुरू हुई।

👉 चार दिनों तक चलने वाला महापर्व है छठ

1. पूजा का पहला दिन नहाय-खाए

कार्तिक शुक्ल पक्ष कि चतुर्थी तिथि को छठ महापर्व का पहला दिन होता है। इस दिन को नहाए-खाए के रूप में मनाया जाता है। इस परंपरा के अनुसार सबसे पहले घर की सफाई करके उसे शुद्ध किया जाता है। इसके पश्चात छठ व्रती स्नान कर शुद्ध शाकाहारी भोजन ग्रहण कर व्रत की शुरुआत करते हैं। घर के अन्य सभी सदस्य व्रती सदस्यों के भोजन करने के बाद ही भोजन ग्रहण करते हैं। नियम के अनुसार, इस दिन भात यानि चावल, लौकी की सब्जी और दाल ग्रहण किया जाता है और खाने में सिर्फ सेंधा नमक का इस्तेमाल किया जाता है।

2. पूजा का दूसरा दिन खरना

दूसरे दिन कार्तिक शुक्ल पंचमी को भक्त दिनभर का उपवास रखते हैं और शाम को भोजन करते हैं। इसे खरना कहा जाता है। खरना के प्रसाद के रूप में गन्ने के रस में बने हुए चावल की खीर के साथ दूध, चावल का पिट्ठा और घी चुपड़ी रोटी बनाई जाती है। इसमें नमक या चीनी का उपयोग नहीं किया जाता है। खीर ग्रहण करने के बाद 36 घंटे का व्रत रखा जाता है। खरना तिथि पर तन और मन के शुद्धिकरण पर ध्यान दिया जाता है।

3. तीसरा दिन छठ पूजा

कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि छठ पूजा का मुय दिन माना जाता है। सायंकाल को पूरी तैयारी और व्यवस्था कर बांस की टोकरी में अर्घ्य का सूप सजाया जाता है और व्रती के साथ परिवार तथा पड़ोस के सारे लोग अस्ताचलगामी यानि डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देने घाट की ओर जाते हैं। सभी छठ व्रती तालाब या नदी के किनारे सामूहिक रूप से इकट्ठा होकर मिट्टी की बेदी बनाकर छठ मइया की पूजा करते हैं फिर डूबते हुए सूर्य को पानी में ाड़े होकर अर्घ्य देते हैं। कुछ लोग वहीं घाट पर रात भर जागरण करते हैं। लेकिन ज्यादातर लोग घर वापस आकर घर में ही रात जागरण करते हैं और सूबह के अर्घ्य के प्रसाद की तैयारी करते हैं

4. छठ पूजा का चौथा दिन

चौथे दिन कार्तिक शुक्ल सप्तमी की सुबह उदीयमान सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। इस दिन सूर्योदय से पहले भक्त पानी में खड़े हो जाते हैं और उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देते हैं। अर्घ्य देने के बाद लोग प्रसाद बांटकर और महिलाएं सुहाग लेकर व्रत का पारण करते हैं।

👉 छठ पूजा पर सूर्य को अर्घ्य क्यों देते हैं ?

छठ पर्व पर सूर्य देव की पूजा का बहुत महत्व होता है। इस पर्व पर पहले दिन डूबते हुए सूर्य को और दूसरे दिन सुबह अर्घ्य दिया जाता है। आखिर सूर्य को अर्घ्य देने से क्या होता है और क्यों देते हैं, इस दिन सूर्य देव को अर्घ्य, जानिए सूर्य को अर्घ्य देने के फायदे।

छठ पर्व चार दिन का होता है। कार्तिक शुक्ल चतुर्थी, पंचमी, षष्ठी और सप्तमी। षष्ठी के दिन शाम को सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। यह एकमात्र ऐसा पर्व है, जिसमें शाम को सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है, जिसे संध्या अर्घ्य कहते हैं। इस समय सूर्य अपनी पत्नी प्रत्यूषा के साथ रहते हैं। इसलिए प्रत्यूषा को अर्घ्य देने का लाभ मिलता है। कहते हैं कि शाम के समय सूर्य की आराधना से जीवन में संपन्नता आती है।

षष्ठी के दूसरे दिन सप्तमी को उषाकाल में सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत का समापन किया जाता है, जिसे पारण कहते हैं। अंतिम दिन सूर्य को वरुण वेला में अर्घ्य दिया जाता है। यह सूर्य की पत्नी उषा को दिया जाता है। इससे सभी तरह की मनोकामना पूर्ण होती है।

कहते हैं कि सुबह के सूर्य की आराधना से सेहत बनती है, रोग मिटते हैं, दोपहर की सूर्य आराधना से नाम और यश बढ़ता है और शाम के समय की आराधना से जीवन में संपन्नता आती है।

शास्त्रों में यह भी बताया है कि उषाकाल में सूर्य की उपासना करने से मुकदमें में फंसे हों तो निकल जाते हैं। आंखों की रोशनी में लाभ मिलता है, अटके काम सलट जाते हैं। पेट की समस्या समाप्त हो जाती है। परीक्षा में लाभ मिलता है।

माना जाता है कि सुबह के समय सूर्य को जल चढ़ाते समय इन किरणों के प्रभाव से रंग संतुलित हो जाते हैं और साथ ही साथ शरीर में प्रतिरोधात्मक शक्ति बढ़ती है।

जिन लोगों की कुंडली में सूर्य कमजोर होता है कहते हैं कि उनमें आत्मविश्वास की कमी होती है और वे निराशावादी हो जाते हैं। प्रातःकाल सूर्य देव के दर्शन से शरीर में स्फूर्ति आती है और यदि शरीर अच्छा महसूस करेगा तो मन भी सकारात्मक होकर निराशावाद को भगाकर आत्मविश्वास बढ़ाता है।

मान्यता है कि जल की धारा में से उगते सूरज को देखना चाहिए इससे धातु और सूर्य कि किरणों का असर आपकी दृष्टि के साथ-साथ आपके मन पर भी पड़ेगा और आपको सकारात्मक उर्जा का आभास होता रहेगा।

धार्मिक दृष्टिकोण से देखें तो सूर्यदेव को आत्मा का कारक माना गया है। ऐसा भी माना जाता है कि सूर्य देव को अर्घ्य देने से वे बहुत जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं और अपने भक्त के जीवन को अंधकार से निकालकर प्रकाश (ज्ञान) की ओर लेकर जाते हैं।

मान्यता अनुसार अर्घ्य देने से घर-परिवार में मान-समान बढ़ता है।

सूर्य को प्रतिदिन अर्घ्य देने से व्यक्ति कुंडली में सूर्य की स्थिति भी मजबूत होती है। छठ पर्व को विधिवत मनाने से सभी तरह का सूर्य दोष मिट जाता है।

ज्योतिषविद्या के मुताबिक हर दिन सूर्य को अर्घ्य देने से व्यक्ति की कुंडली में यदि शनि की बुरी दृष्टि हो तो उसका प्रभाव भी कम होता है। इससे करियर में भी लाभ मिलता है।

सूर्य प्रकाश का सबसे बड़ा स्रोत है और प्रकाश को सनातन धर्म में सकारात्मक भावों का प्रतीक माना गया है। इसमें सभी तरह के रोग और शोक को मिटाने की क्षमता है। प्रतिदिन प्रातःकाल सूर्य के समक्ष कुछ देर खड़े रहने से सभी तरह के पौषक तत्व और विटामिन की पूर्ति होने की संभावना बढ़ जाती है।

जिस तरह पौधों के लिए जल के अलावा सूर्य के प्रकाश की भी जरूरत होती है, उसी तरह मनुष्य के जीवन के लिए भी सूर्य के प्रकाश या धूप की अत्यंत ही आवश्यकता होती है।

सूर्य प्रकाश का सबसे बड़ा स्रोत है और प्रकाश को सनातन धर्म में सकारात्मक भावों का प्रभाव होता है।

👉 औषधीय गुणों से भरपूर है छठ में चढ़ने वाला प्रसाद

छठ में पूजा सामग्री और चढ़ने वाले फल व सब्जियों का धार्मिक महत्व तो होता ही है लेकिन इनका औषधीय महत्व भी होता है। इस पर्व में प्रसाद के रूप में चढ़ने वाले फल, सब्जियां और ठेकुआ का हमारी सेहत के लिए काफी फायदेमंद होते है।

ठेकुए में है ठंड से बचाव का उपायः

छठ पूजा में वैसे तो कई तरह के प्रसाद चढ़ाए जाते हैं, लेकिन उसमें सबसे खास ठेकुआ का प्रसाद होता है, जिसे गुड़, आटे और घी से बनाया जाता है। छठ की पूजा इसके बिना अधूरी मानी जाती है। सूप में इसे शामिल करने के पीछे यह कारण है कि छठ के साथ सर्दी की शुरुआत हो जाती है और ऐसे में ठंड से बचने और सेहत को ठीक रखने के लिए गुड़ बेहद फायदेमंद होता है।

केले liहैं काफी फायदेमंदः

छठ के प्रसाद के रूप में चढ़ने वाले केले का भी खास महत्व है। यही वजह है कि प्रसाद के रूप में इसे बांटा और ग्रहण किया जाता है। इसके पीछे तर्क यह है कि छठ पर्व बच्चों के लिए किया जाता है और सर्दियों के मौसम में बच्चों में गैस की समस्या हो जाती है। ऐसे में उन्हें इस समस्या से बचाने के लिए छठ के प्रसाद में केले को शामिल किया जाता है।

डाभ नींबू है बड़ा ही गुणकारीः

छठ के प्रसाद में डाभ नींबू, जो कि एक विशेष प्रकार का नींबू है, जिसे कई जगह पर चकोतरा कहा जाता है जरूर चढ़ाया जाता है। ये दिखने में बड़ा और बाहर से पीला व अंदर से लाल होता है। आपको बता दें कि डाभ नींबू हमारे स्वास्थ्य के लिए काफी फायदेमंद होता है और ये हमें कई रोगों से दूर रखता है। डाभ नींबू हमें बदलते मौसम में होने वाली कई तरह की बीमारियों से लड़ने के लिए तैयार करता है।