USA-china trade war: महत्वाकांक्षा की लड़ाई तो नहीं ?

व्यापार (Trade) का मुख्य उद्देश्य ही है अपने हितों को सुरक्षित रखते हुए लाभ कमाना l छोटा खुदरा व्यापारी, व्यापारिक घराना, औद्योगिक घराना या देश ही क्यों न हो सभी का व्यापारिक प्रयास होता है कि स्वयं और अपने अंगीकृत अंशधारकों के तात्कालिक और दीर्घकालिक हितों को ध्यान में रखते हुए लाभदायक व्यापार को इस तरह आगे बढ़ाया जाय कि व्यापारिक नैतिकता और सामाजिक सरोकार को चोट न पहुंचे l

प्रत्येक देश की सरकार अपने देश के समग्र आर्थिक विकास को ध्यान में रखकर अपनी व्यापार नीति (trade policy) लागू करती हैं l वैश्वीकरण के वर्तमान परिवेश में देशों की भौगोलिक सीमाएं व्यापार के मामले में अप्रासंगिक सी प्रतीत होती हैं l आज सैद्धांतिक तौर पर किसी भी देश का व्यापारी दुनिया में कहीं भी व्यापार कर सकता है बशर्ते कि वह अपने देश और अन्य देश के द्वारा प्रतिपादित नियमों का अनुपालन करता हो l सरकारों का काम व्यापार के लिए आवश्यक सुविधाओं का सृजन करके उचित माहौल तैयार करना तथा तर्कसंगत कर प्रणाली स्थापित करना होता है l

विदेशों से आयात होने वाली वस्तुओं की उपयोगिता, उनकी आवश्यकता और घरेलू उद्योगों पर उनके पड़ने वाले प्रभाव को ध्यान में रखकर सरकार सीमा शुल्क निर्धारित करती हैं जो की पूरे विश्व में स्थापित सामान्य प्रक्रिया है l सीमा शुल्क वस्तु और उनके उद्गम देश पर भी निर्भर करता है अर्थात अलग अलग देशों से आयात होनेवाले एक ही वस्तु पर अलग अलग शुल्क हो सकता है l विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organization) द्वारा निर्धारित दिशा निर्देशों का पालन करना भी अपेक्षित होता है l

USA-china trade war: महत्वाकांक्षा की लड़ाई तो नहीं ? USA-china trade war: महत्वाकांक्षा की लड़ाई तो नहीं ?

वर्तमान काल खंड, जो अमेरिका में सत्ता परिवर्तन के बाद डोनाल्ड ट्रम्प की वापसी के बाद शुरू हुआ है, में ट्रम्प प्रशासन की आक्रामकतापूर्ण महत्वाकांक्षी योजना MAGA ( Make America Great Again ) ने पूरी दुनिया के अर्थतंत्र में जबरदस्त हलचल और कौतूहलपूर्ण अनिश्चयता का माहौल बना रखा है l अपने व्यापारिक (Trade) घाटे को कम करने और घरेलू उद्योगों को मजबूत करके रोजगार के अवसर सृजित करने के लिए ट्रम्प प्रशासन ने टैरिफ बटन दबा रखा है और पारस्परिक टैरिफ लगाकर आयात नियंत्रित करने का प्रयास कर रहा है l

ट्रम्प प्रशासन द्वारा शुरू की गई गतिविधि ने विश्व व्यापार (World Trade) जगत में भूचाल पैदा कर दिया है और विशेषज्ञों के अनुसार अनिश्चयता का ज्वालामुखी फूट पड़ा है l प्रत्येक देश इससे उत्पन्न होने वाले संभावित दुष्परिणामों से बचने के उपाय में लगे हैं l जहां कुछ देशों और संगठनों ने मूहतोड़ टैरिफ अमेरिका पर लगा रहे हैं वहीं कुछ देश अमेरिका से समझौता के रास्ते को अपना कर आगे बढ़ने का प्रयास में लगे हैं l

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USA-china trade war: महत्वाकांक्षा की लड़ाई तो नहीं ? USA-china trade war: महत्वाकांक्षा की लड़ाई तो नहीं ?

हालांकि अमेरिका ने अपने लगभग सभी व्यापारिक साझेदारों पर नया टैरिफ लगाया है परंतु चीन के प्रति उनका दृष्टिकोण कुछ ज्यादा ही उग्र नजर आ रहा है और चीन की प्रतिक्रिया भी “जैसे को तैसा” वाली लग रही है l विश्व की एक बहुत बड़ी आर्थिक शक्ति “ यूरोपियन यूनियन” भी उग्र प्रतिक्रिया देने के बजाय समझौतावादी रुख अख्तियार करके अपने आर्थिक हितों की सुरक्षा के प्रयास में संलग्न है l ऐसा नहीं है कि यूरोपियन यूनियन ट्रम्प प्रशासन के निर्णय के दुष्परिणामों से अछूता है फिर भी उनकी प्रतिक्रिया ज्यादातर समझौता मूलक रही है l

ट्रम्प प्रशासन द्वारा शुरू की गई प्रक्रिया ने पूरे विश्व के अर्थ जगत में अपना प्रभाव दिखलाया जबकि सभी मुख्य देशों के स्टॉक एक्सचेंज के सूचकांक धराशायी हुए और निवेशकों को लाखों करोड़ रुपये का नुकशान और इस क्रम में अमेरिका के भी बड़े बड़े नाम जैसे ऐमज़ान, माइक्रोसॉफ्ट, गूगल, एप्पल, टेसला आदि के बाजार मूल्य एक ही दिन में हजारों करोड़ डॉलर कम हो गए l

इन सभी उथल पुथल के बीच जहां पूरा विश्व प्रभावित हुआ है वहीं पूरी दुनिया की निगाहें अमेरिका – चीन के कदमों पर टिकी हुई हैं l ऐसा लगता है कि विश्व की पहले और दूसरे नंबर की अर्थव्यवस्था अपने वर्चस्व की लड़ाई लड़ रहे हों l वर्तमान विश्व की दो आर्थिक महाशक्तियाँ जोर आजमाइस करती हुई प्रतीत हो रही हैं l

अमेरिका द्वारा चीन पर लगाया गया 30% से 245% तक का टैरीफ दर्शाता है कि इसमे व्यापारिक बुद्धिमत्ता से ज्यादा प्रतिक्रियावादी सोच ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया है l इसी तरह चीन द्वारा लगाया गया 125% का टैरीफ भी प्रतिक्रिया का ही परिणाम है l यदि यह प्रतिस्पर्धा इसी तरह आगे बढ़ी तो यह दो महाशक्तियों के आर्थिक वर्चस्व की लड़ाई से हट कर दोनों राष्ट्राध्यक्षों के अहं की लड़ाई के रूप में बदल सकती है, ऐसा प्रतीत होता है l ट्रम्प भी चीन से वार्ता के लिए इक्छुक हैं पर शुरुआत कौन करे, इस मुद्दे पर अकड़ बाकी है l यदि ऐसा हुआ तो इसके दुष्परिणाम दीर्घकाल तक दुनिया को झेलना पड़ सकता है l

आइए हमलोग अमेरिका और चीन की अर्थव्यवस्थाओं को उनके कुछ आंकड़ों के माध्यम से समझने की कोशिश करते हैं जिससे यह समझना आसान होगा कि आखिर क्यों और किस दम पर ये दोनों महाशक्तियाँ एक दूसरे को आँखें दिखा रही हैं और इसका संभावित समाधान कहाँ पर मिल सकता है l

अमेरिका 2024 के आंकड़ों के अनुसार 28,00,000 करोड़ डॉलर के सकल घरेलू उत्पाद के साथ विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। यहाँ प्रति व्यक्ति आय लगभग 90,000 डॉलर है l

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अमेरिका के सकल घरेलू उत्पाद में सेवा क्षेत्र का योगदान लगभग 77%, उद्योग का 21% और कृषि का 2% है l अमेरिका की आबादी लगभग 35 करोड़ है जो कि भारत और चीन के बाद तीसरे स्थान पर है l अमेरिका तकनीकी नवोन्मेष खास करके आरटिफिसियल इंटेलिजेंस, सॉफ्टवेयर, एरोस्पैस यदि में विश्व में अग्रणी है l यह अपने सकल घरेलू उत्पाद का 3.4% हिस्सा अनुसंधान और विकास पर खर्च करता है l यह कहा जा सकता है कि अनुसंधान और विकास पर सबसे ज्यादा धन खर्च अमेरिका करता है। अतः तकनीक के मामले में अमेरिका विश्व के अन्य देशों की तुलना में बहुत आगे रहता आया है l

विश्व के अर्थ जगत में अमेरिका का वर्चस्व रहा है और इसकी मुद्रा दुनिया की सबसे सुरक्षित मुद्रा मानी जाती है और अमेरिका को व्यापार (Trade) का पावरहाउस कहा जाता है l विश्व व्यापार का लगभग 54% हिस्सा डॉलर के माध्यम से होता है l अमेरिका का निर्यात लगभग 3 लाख करोड़ डॉलर का है जिसमें एयरोस्पेस, टेक्नोलॉजी, दवाइयाँ और कृषि उत्पाद प्रमुख हैं l दुनिया की 500 बड़ी कॉम्पनियों में से 139 कम्पनियों के मुख्यालय अमेरिका में हैं l

अमेरिका के पास दुनिया की सबसे ताकतवर सेना है जिसकी दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों में उपस्थिति है और इसका रक्षा बजट 80,000 करोड़ डॉलर से ज्यादा है जिससे सेना और सैन्य उपकरणों का आधुनिकीकरण सबसे ज्यादा है l विश्व के सबसे अच्छे विश्वविद्यालय अमेरिका में स्थित हैं l यहाँ मानव संसाधन काफी प्रतिभा सम्पन्न है और विश्व की श्रेष्ट प्रतिभाएं अमेरिका की ओर आकर्षित होती हैं l यहाँ Trade के लिए अनुकूल माहौल है और पूंजी की सुलभता भी है और अमेरिका सांस्कृतिक रूप से भी काफी समृद्ध है l अमेरिका को सुपर पावर का दर्ज प्राप्त है और यह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य है l

वहीं चीन की बात करें तो करीब 18,00,000 करोड़ डॉलर के समतुल्य सकल घरेलू उत्पाद के साथ यह दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी Trade अर्थव्यवस्था है जहां प्रति व्यक्ति आय लगभग 28,000 डॉलर है l यदि क्रय शक्ति समता ( PPP, Purchasing Power Parity) के संदर्भ में देखा जाय तो चीन अमेरिका को पछाड़ कर लगभग 35,00,000 करोड़ डॉलर के सममूल्य पर विश्व में सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाती है l AI, EV, Quantom आदि के क्षेत्र में काफी तेजी से अग्रसर है l अपनी सकल घरेलू उत्पाद का 2.6% अनुसंधान और विकास पर खर्च करता है l इसकी मुद्रा का महत्व तेजी से बढ़ा है लेकिन सीमित परिवर्तनीयता के कारण इसकी ग्राह्यता कमजोर है l

चीन दुनिया का सबसे बड़ा निर्यातक देश है जहां से लगभग 3.6 लाख करोड़ डॉलर के समतुल्य निर्यात होता है जिसमें इलेक्ट्रॉनिक,मशीन,उपभोक्ता सामान प्रमुख हैं l चीन की साख विश्व स्तर पर बढ़ी है परंतु सरकारी हस्तक्षेप ज्यादा होने से विश्वसनीयता की कमी है l चीन के पास भी एक काफी बड़ी और शक्तिशाली सेना है और इसका रक्षा बजट करीब 29,000 करोड़ डॉलर है l चीन में काफी शिक्षित कार्यबल है और यहाँ भी शिक्षा के अनुकूल माहौल पर जोर दिया जा रहा है l Trade के लिए आवश्यक माहौल में काफी सुधार हुआ है l नवीकरणीय ऊर्जा और इलेक्ट्रिक वाहन का सबसे बाद उत्पादक देश के रूप में चीन प्रतिष्ठित हो रहा है l

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अमेरिका एक लोकतान्त्रिक देश है जहां के शासन के प्रमुख का कार्यकाल 4 वर्ष का होता है और वर्तमान संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार कोई व्यक्ति दो से ज्यादा बार राष्ट्रपति नहीं बन सकता है l डोनाल्ड ट्रम्प को अगली बार राष्ट्रपति का पद मिलेगा या नहीं कहा नहीं जा सकता है l प्रजातान्त्रिक व्यवस्था के कारण उन्हें अपने देश में विरोधी पार्टियों के साथ साथ अपने दल के अंदर भी विरोध का सामना करना पड़ सकता है l

वर्तमान में भी अमेरिका में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए हैं। ट्रम्प और फेड्रल रिजर्व के चेयरमैन जेरोम पोएल के मतभेद जगजाहिर हो रहे हैं। नॉर्थ अमेरिका और साउथ अमेरिका के व्यापारिक हित एक दूसरे से भिन्न होने के कारण टकराव की संभावना बनती है l इन सभी कारणों से ट्रम्प के सामने आंतरिक चुनौतियाँ भी रहेंगी l अमेरिकी ट्रेजरी में विदेशी निवेश ज्यादा है l 76500 करोड़ डॉलर के निवेश के साथ चीन अमेरिकी ट्रेजरी में निवेश करने वाला जापान के बाद दूसरा सबसे बड़ा निवेशक है l

यदि चीन अमेरिकी ट्रेजरी में निवेश को कम करता है तो अमेरिकी सरकार के बॉन्ड पर लागत बढ़ जाएगी और सरकारी खर्च भी बढ़ेगा l शायद अमेरिका में आर्थिक उथल पुथल, मंदी की आहट, महंगाई की सुगबुगाहट, विरोध प्रदर्शन, कम्पनियों के बाजार मूल्य का क्षरण आदि के कारण ट्रम्प प्रशासन ने चीन को छोड़कर अन्य देशों पर लगाए गए Trade टैरीफ को 90 दिनों के लिए स्थगित किया है और भारत जैसे बड़े बाजार वाले देश से ट्रैड समझौता के लिए अपने उपराष्ट्रपति को भारत भेजा है l ट्रम्प के मित्र उद्योगपति एलोन मस्क की कंपनी टेसला को भारी क्षति उठानी पड़ी है और यदि यही स्थिति जारी रही तो नुकसान बढ़ सकता है l
चीन के राष्ट्रपति जी पिंग अपने जीवन पर्यंत राष्ट्रपति बने रहेंगे और उनके लिए आंतरिक विरोध की संभानवा कम है l बड़ी आबादी के कारण घरेलू बाजार का आकार भी बड़ा है l अमेरिका के विरोधी देशों के साथ मिलकर नए बाजार का सृजन करके चीन अपने Trade को संभाल सकता है l

वैश्वीकरण के बाद से दुनिया में व्यापारिक (Trade) ध्रुवीकरण लगभग निष्प्रयोज्य हो रहा था l परंतु यदि ट्रैड वार और गहराया तो दुनिया के देश फिरसे संरक्षणवादी रुख अपनाना शुरू करेंगे और व्यापारिक ध्रुवीकरण की प्रबल संभावना बलवती होंगी l व्यापारिक तनाव कभी कभी सामरिक तनाव का रूप अख्तियार कर लेती हैं और यदि समय रहते न संभाला गया तो सैन्य युद्ध भी हो सकते हैं l

दोनों महाशक्तियों की तुलना करने पर चाहे जो भी लाभ की स्थिति में नजर आए परंतु इतना तो निश्चित है कि विश्व Trade हार जाएगा l जैसा कि ब्रिटेन के प्रधानमंत्री केर स्टारमेर ने कहा है कि ट्रैड वार में कोई विजेता नहीं होता है l वैश्वीकरण के सिद्धांत को चोट लगेगी और विश्व व्यापार संगठन के मानदंडों पर भी आंच आयेगी l ग्लोबल साउथ इससे ज्यादा आहत होगा और विश्व से गरीबी उन्मूलन के प्रयास को जबरदस्त आघात पहुंचेगा l विश्व के बड़े बड़े अर्थशास्त्री वैश्विक मंदी की भविष्यवाणी कर रहे हैं l

डोनाल्ड ट्रम्प का अमेरिका को महान बनाने का प्रयास एक दीर्घकालिक योजना लगती है जिसको पूरा करने के लिए वर्तमान में काफी कीमत चुकानी पड़ सकती है l अमेरिका में संभावित Trade मंदी और महंगाई नागरिकों के साथ साथ सरकार के लिए भी गंभीर चुनौती पेश करेंगे जिसका सामना करना आसान नहीं होगा l ट्रम्प का महानायक बनने का प्रयास उन्हें कहीं खलनायक न बना दे l ट्रम्प की आक्रामकता ने उनके परंपरागत मित्र जैसे कनाडा, यूरोपियन यूनियन आदि में भी नाराजगी का संचार किया है जिससे अमेरिका के वैश्विक प्रभाव को कम कर सकता है l

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